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Saturday, July 11, 2015

पहला ओबीसी प्रधानमंत्री !



यहां बोलो, वहां बोलो, जहां-तहां बोलो क्योंकि बोलना ही राजनीति है। खुद बोलो और दूसरों की बोलती बंद करो। इस काम में जो जितना माहिर, वो उतना बड़ा नेता। अमित शाह ने बोलते बोलते ही मोदी को ओबीसी बता दिया। कहा देश को पहला ओबीसी प्रधानमंत्री देने वाली हम अकेली पार्टी हैं। अमित शाह का ये कहना और तमाम पार्टियों की बोलती बंद। लालू प्रसाद का तो हाल बुरा है। बोलना तो दूर वो इस मामले पर रिऐक्ट कैसे करें यही नहीं समझ पा रहे।

सुना है इस खबर के बाद कांग्रेस मुख्यालय में हड़कंप मच गया था। कांग्रेसी ये ढूंढने में लग गए कि कौन-कौन सी कौम-धर्म और जाति का पहला प्रधानमंत्री उन्होंने देश को अब तक दिया है। तभी किसी सयाने की पीछे से आवाज़ आई कि दोस्तों देश को पहला प्रधानमंत्री ही हमने दिया था। हम शुरुआत ना करते तो ये परंपरा कहां से आती।

मतलब बोलना तुरंत और जवाब इंस्टैंट आना चाहिए लेकिन फायदा तभी है जब उसके लिए बोलो जो खुद बोल सकता हो। मसलन हिंदु, मुस्लिम, जाट, सिक्ख, ब्राह्मण, ओबीसी वगैरह वगैरह। अब आप ही बताइए.....विकास बोल सकता है क्या ? बिजली-पानी सड़क के मुंह हैं क्या ? अगर इन्हें बोलना आता तो क्या हमारे नेता इनकी आवाज़ नहीं उठाते ? किसे पता तब जुमला आता कि देश को विकास देने वाला पहला प्रधानमंत्री हमारी पार्टी ने दिया।
‘हम यादवों की पार्टी हैं’ की तर्ज पर तब पार्टियां कहतीं हम बिजलियों की पार्टी हैं। हम आएंगे तो बिजली के दिन बहुर जाएंगे। दिन में 2-4 घंटे बमुश्किल दिखने वाली बिजली रातों को भी जला करेगी। बिजली रानी अगर अपना राज चाहिए, अपना आधिपत्य चाहिए तो हमें वोट दो। तब सारी बिजलियां इकट्ठा हो उसी पार्टी को वोट देतीं।

पानी को अपने दुर्दिन दूर करने होते तो वो पानी वाले कौम को वोट देती। आखिर साफ सुथरे पीने के पानी को जब सीवर का गंदा जल आलिंगन करता है तो उसे भी तो कष्ट होता होगा। इस ज़लालत से मुक्ति के लिए वो अपनी ही कौन के नेता को चुनती ना ?  अरे भाई, पानी ही पानी के दर्द को बेहतर समझ सकता है।

मेरी राय है कि देश के तमाम साइंटिस्ट मिलकर बिजली-पानी-सड़क-स्कूल-अस्पताल वगैरह के मुंह इजात करने का काम करें। ये बोल सकेंगे तो हमारे नेता बोल सकेंगे। तब कुर्मी-मुस्लिम-जाट-दलितों की पार्टी नहीं बल्कि बीजली-पानी-सड़क की सरकार होगी। जो पार्टी जीतेगी कम से कम उस कौम की दशा सुधरेगी और ऊपर वाले की दया से कहीं सबको एक-एक कर मौका मिल गया तो आने वाले 67 वर्षों में देश का विकास तय समझिए।

Sunday, June 21, 2015

अपना-अपना योग



अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर अपने-अपने तरह का योग हर किसी ने किया। आखिर योग से तनाव कम होता है और मानसिक शांति मिलती है, तो भइया जिस काम को करके मानसिक शांति मिले वही योग है।

योगी आदित्यनाथ को दूसरों की शांति भंग करके शांति मिलती है। ये भी एक तरह का योग है। शांतिभंगासन के दौरान ही उन्होंने कहा था कि जो सूर्य नमस्कार नहीं कर सकता वो समुद्र में डूबकर मर जाए। खुदा ना खास्ता अगर उन्हें खुद कभी पानी की ज़रूरत पड़ी तो काम शायद चुल्लू भर से ही हो जाए। 

इंटरनेश्नल योग डे के 2 दिन पहले ही पूनम पांडे भी योगाआसन करती दिखीं। उन्होंने देह-उभारासन किया। देखते ही देखते उनके आसन ट्विटर पर ट्रेंड करने लगे। मोदी ने पहले ही उनसे संपर्क किया होता तो नाहक राजपथ पर लाउडस्पीकर लगवाने के पैसे ना फूंकने पड़ते। यकीन मानिए जिन युवाओं ने पूनम पांडे का योग देखा है उन्हें पूनम के सारे आसन, वीडियो म्यूट करके भी समझ आ गए। 

ट्विटर पर योग दिवस के दिन सुबह से ही सोनिया गांधी भी ट्रेंड करती दिखीं। भक्त पूछ रहे थे 'व्हेयर इज़ सोनिया' ? बाद में पता चला कि वो तो हठासन पर थीं। दरअसल वो नाराज़ थीं आयुष मंत्रालय से। अरे भाई, विदेशी चटाई आनी ही थी तो चीन से क्यों इटली से क्यों नहीं। फिर वो तो स्पेशल डिस्काउंट भी दिलवा देतीं। 

लालू भले ही किसी इवेंट में ना गए हों पर विरोधासन उन्होंने भी किया। अंतर्राष्ट्रीय योग डे को अंतर्राष्ट्रीय तोंद दे डिक्लेयर करने में दरअसल उनकी एक चाल थी। मोदी सहित तमाम बीजेपी नेताओं को एक तरफ खड़ा कर दीजिए और दूसरी तरफ लालू को। मजाल है तोंद के मामले में कोई हरा दे। तो लब्बोलुबाब ये है कि 21जून को अंतर्राष्ट्रीय तोंद डे है... तोंद के मामले में लालू मोदी से ऊपर हैं...इसलिए राज योग लालू का है।

उधर बाबा रामदेव के लिए 21 जून कुछ खास स्पेशल नहीं था, आखिर वो रोज़ योग जो करते हैं। पर उनका दावा है कि दुनिया अगर उनके आसनों का पालन करे तो गैस की समस्या से हमेशा के लिए मुक्त हो जाएगी। अब हाई-फाई बाबा को कौन समझाए कि खाली पेट भी गैस बनती है। गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के लिए सरकार ने जितने लोगों को राजपथ पर इकट्ठा किया उससे कई गुना ज्यादा गरीब तो हर रोज़ देश में भूखा सोता है। ऐसे में गैस ना बने तो क्या बने। रामदेव जो कर रहे हैं उसके लिए साधुवाद लेकिन गरीबी मिटाने वाला अगर कोई योग वो इजाद कर पाएं तो देश का बड़ा भला होगा। इसके बाद शायद योग करने के लिए लोगों को डंडा नहीं करना पड़ेगा। हर रोज़ देश के करोड़ों भूखे पूरे मनोयोग से योग करेंगे। 

Tuesday, June 16, 2015

सुषमा स्वराज की गलती



बड़े-बूढ़े ठीक ही कह गए हैं नेकी कर दरिया में डाल। सुषमा स्वराज को पता होता कि ललित मोदी की मदद करना इतना भारी पड़ेगा तो उन्होंने नेकी दरिया में नहीं लंदन की टेम्स नदी में बहाई होती। इंसानियत के नाते सुषमा ने ललित मोदी को लंदन से बाहर क्या निकाला सात समंदर पार भारत में हाय-तौबा मच गई। अब विपक्ष कह रहा है इस्तीफा दो। सुषमा तो समझ ही नहीं पा रहीं कि आखिर इतना बड़ा क्या अपराध कर दिया। बाल-बच्चे वाले शक्स की मदद करना इतना बड़ा गुनाह कैसे हो सकता है और जो छोटी-मोटी गलती लग भी रही हो तो सज़ा भी छोटी-मोटी ही होनी चाहिए। सीधा इस्तीफा?  पूरी क्लास के सामने चेयर पर खड़े होने की तर्ज पर संसद में कुर्सी पर खड़ा किया जा सकता है या फिर कान पकड़कर सॉरी बोलना भी एक ऑप्शन था। ज़रा ज़रा सी बात के लिए इस्तीफा क्यों ?

वैसे परंपरानुसार हम वसुधैव कुटुंबकम की विचारधारा रखते हैं। सीमा या परिधी में बांटकर विश्व को हमने कभी देखा नहीं। भले ही चीन आंखें तरेरे हम तो हिंदी-चीनी भाई-भाई हैं। पाकिस्तान के केस में तो हमारी सरकारें रहीम दास जी के दोहे 'क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात' को वर्षों से फॉलो करती रही हैं। फिर सुषमा ने मोदी की मदद लंदन से बाहर निकलने में की है ना कि भारत से बाहर निकलने में। अब एक देश से निकलकर दूसरे देश जाने में कैसी आफत। वो लंदन रहें या पुर्तगाल हमारे लिए तो बात एक ही बैठती है ना? 

हालांकि इस प्रकरण के बाद सुषमा को भी कुछ विभीषण भी मिल गए। आखिर अपने पराए का पता मुसीबत के समय ही तो चलता है। कल तक जिस कांग्रेस को सुषमा 'रावन' मानती थीं उसी में उन्हें 'जीवन' मिला। दिग्विजय सिंह ने सुषमा के जले पर बड़े प्यार से नमक का मरहम लगाया है। कहा है, अंतर्रात्मा की आवाज़ पर सुषमा इस्तीफा दें (अंतर्रात्मा मौन हो जाए तो क्या करना है ये नहीं बताया दिग्गी ने)। साथ ही ये भी जोड़ दिया कि सुषमा बीजेपी की अंदरूनी कलह से पीड़ित हैं। अब दिग्गी राजा को कौन समझाए कि यहां पीड़ित सुषमा नहीं अमित शाह हैं। सही मौका था, पुराना हिसाब-किताब चुकता करने का लेकिन दिल के अरमां आंसुओं में बह गए। कलेजे पर पत्थर रखकर सुषमा की तरफदारी करनी पड़ रही है।

उधर सुषमा को लेकर लालू की हमदर्दी भी सामने आ गई। कहने लगे पीएम मोदी सुषमा को पसंद नहीं करते थे यही वजह है कि सुषमा राजनीति का शिकार हुई हैं। जानकारों का मानना है कि लालू सुषमा की पिक्चर के बीच में अपनी अपकमिंग फिल्म का ट्रेलर दिखा रहे हैं। जैसे मोदी सुषमा को पसंद नहीं करते थे ठीक वैसे ही नितीष भी लालू को पसंद नहीं करते थे। कल दिन अगर लालू भी राजनीति का शिकार हों तो जनता स्वतः समझ ले कि झोल कहां है। संभव है उन्होंने अपने अमित शाह की तलाश भी कर ली हो।

हालांकि आस्तीन के सांप को खोजना पहले ज़रूरी है।

Wednesday, June 10, 2015

जितेंद्र तोमर के बहाने...

मंत्री बनने के लिए साम-दाम-दंड-भेद का फॉर्मुला अब ओल्ड फैशन बन गया है, नया ट्रेंड है त्याग का। नेता भोगी नहीं जोगी दिखना चाहते हैं। उच्च पद पाने के लिए तुच्छ वस्तुओं का त्याग करना ही पड़ता है। दिल्ली से लेकर बिहार तक यही फैशन है।

वो ज़माना लद गया जब लोग जेल में बैठे-बैठे नेता बनने की सोचते थे। अब संस्कृति ग्लोबल हो चुकी है। भारतीय तहजीब की चिंदी चिंदी करके आप महान नहीं बन सकते। ये तो साधू-संयासियों का देश है। यहां की परंपरा ही रही है त्याग की। संयम तो इतना सिखाया गया है कि वानप्रस्थ में लोग धन-दौलत और संयास आश्रम में बीवी तक का त्याग कर देते थे।

कुछ ऐसे ही ज्ञान की प्राप्ति दिल्ली के कानून मंत्री जितेंद्र तोमर को पुलिस हिरासत में हुई। संभव है द्वापर युग के बाद कृष्ण कल दोबारा जेल में अवतरित हुए होंगे और अर्जुन रूपी तोमर को उपदेश दिया होगा। तोमर ने बिना एक मिनट की देरी किए पुलिस कस्टडी से ही अपना इस्तीफा अरविंद केजरीवाल तक पहुंचा दिया। कहा मैं सच्चा हूं, इस्तीफा तो नैतिक आधार पर दिया है। यकीन मानिए, त्याग, नैतिकता और संयम का ऐसा संगम हर बरस इलाहाबाद में लगने वाले माघ मेले में भी आपको नहीं दिखेगा।

कुछ ऐसी ही विरक्ति लालू को भी हो गई है राजनीति से। सत्ता सुख त्याग कर सन्यासी बन गए हैं। कहते हैं मुझे कुर्सी का लोभ नहीं रहा। नीतीष को ही दे दो। मैं तो नीलकंठ बनकर ज़हर पीना चाहता हूं।

अब वजहों में अगर ना उलझें तो आम और लीची का त्याग तो मांझी ने भी किया है। लालू अगर नीलकंठ बनकर ज़हर पी रहे हैं तो मांझी भी कोई मैंगो शेक या लीची जूस नहीं नहीं गटक रहे। फिर त्याग तो त्याग है, कंपेयर करना ठीक नहीं।

सबसे ज्यादा गजब बहनजी ने ढाया। एक वक्त था जब मायावती अंबेडकर को गोद में लेकर बैठ गई थीं। कोई होलिका में आग भले ही दे लेकिन अंबेडर छूटने नहीं चाहिए। चारों तरफ लक्ष्मण रेखा भी खींच दी थी ताकि दूसरी पार्टीयां अंदर ना आ सकें। अंबेडकर को रावण रूपी कोई दूसरी पार्टी हर ले गई तो फिर कौन हनुमान आएगा इज्जत बचाने, लेकिन जब से बीजेपी ने अंबेडकर हरण किया है मायावती त्याग की मूर्ती बन गई हैं। दबी जुबान अंबेडकर को अपना ज़रूर बताती हैं पर जानती हैं सियासी फायदा अब त्याग में है।

वैसे त्याग में डेब्यू करने वाली पहली नेता सोनिया गांधी थीं जिन्होंने अंतरात्मा की आवाज़ सुन 2004 में प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी। उस वक्त पूरे देश में हाहाकार और जयजयकार एक साथ हो गई थी। उसके बाद तो जैसे कांग्रेस का त्याग के फॉर्मूले पर कॉपीराइट हो गया। राजस्थान छोड़ा, महाराष्ट्र छोड़ा, हरियाणा छोड़ा......पंजाब, आंध्रप्रदेश और कश्मीर में जो थोड़ी-बहुत गठबंधन की सरकार थी वो भी छोड़ दी।

हां, बीजेपी इस मामले में ज़रूर चालू निकली। खुद तो त्याग करती नहीं लेकिन उपदेश ऐसे देती है कि अच्छे-अच्छों के सिर फिर जाएं। त्याग की ऐसी घुट्टी मोदी ने जनता को पिलाई कि आम आदमी ने सिलेंडर की सब्सिडी तक छोड़ दी।

वाकई, हर तरफ त्याग ही त्याग दिख रहा है।

Monday, June 8, 2015

राखी बिड़लान : बड़ी नाइंसाफी है






बीजेपी कतई राखी बिड़लान के पीछे पड़ गई लगती है, करना धरना कुछ नहीं खामखां दूसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाना। कहते हैं सोलर स्ट्रीट लाइट और सीसीटीवी कैमरे महंगे लगाए हैं। जितने के होने चाहिए उससे ज्यादा का रेट बताया है। सैकड़ों-हजारों में नहीं लाखों-करोड़ों में कमाया है।

हद है जनाब, आप जब घर में नौकर से सामान मंगाते हैं तो क्या वो सही रेट बताता है। आलू लाएगा 8 रुपए किलो बताएगा 10 रुपए किलो। अहसान जताएगा अलग, कि साहब बड़ी धूप में गए थे आलू लेने...ताकि आपको दया आ जाए और आप 5 रुपए अपनी जेब से दे दें। भाई सेवा का मेवा तो मिलना ही चाहिए ना। अब इसे क्या आप भ्रष्टाचार कहेंगे ?

नौकर तो फिर भी आलू खुद छांटता है, खराब निकले तो मालिक गरियाएगा। पर दिल्ली में लगे सीसीटीवी कैमरे राखी बिड़लान ने खुद थोड़े ही छांटे थे...किसी को भेजा ही होगा। आरोप तो उनके नौकर पर लगना चाहिए। इनोसेंट मैडम को जो रसीद पकड़ा दी, मैडम ने आगे बढ़ा दी। आखिरकार दुनिया की सबसे इनोसेंट पार्टी से ताल्लुक जो रखती हैं।

हालांकि अरविंद केजरीवाल ने राखी का बचाव किया है। भ्रष्टाचार...छीछीछी...। केजरीवाल ने कहा है कि सामान की कीमत उसकी अहमियत से आंकनी चाहिए ना कि कॉस्ट से। बल्कि बहू-बेटियों की रक्षा के लिए लगाए जाने वाले कैमरे की तो कीमत आंकना ही गलत है। ये तो बहुमूल्य हैं। हमने तो फिर भी चंद लाख में लगा दिए कांग्रेस का राज होता तो ऐसी बेशकीमती और नायाब चीज लग ही नहीं पाती।

उड़ती उड़ती खबर ये भी है कि राखी सावंत ने अपने वकील को बुलाया है। राखी का कहना है कि उनके नाम का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। जब भी आप को सुर्खियां बटोरनी होती है राखी बिड़लान को आगे कर दिया जाता है। उन्हे डर है जीवन भर की मेहनत के बाद कमाया नाम, मेरा मतलब 'ड्रामा क्वीन' का खिताब राखी बिड़लान को ना दे दिया जाए।


Saturday, June 6, 2015

प्रभु इच्छा !

घोर कलयुग है! सुबह सवेरे खबर मिली कि तेलंगाना में पुजारियों ने भगवान को किडनैप कर लिया है। धमकी दी है सो अलग, कि जब तक सरकार वेतन नहीं बढ़ाती भगवान ऐसे ही उनके कब्जे में रहेंगे। ना धूपबत्ती ना आरती, दर्शन करने की तो सोचना भी मत। अगर अभी कोई फरियाद है भी तो उसे पोस्टपोन कर दीजिए, क्योंकि भगवान ताले में बंद हैं और आपकी आवाज़ उन तक पहुंच ही नहीं रही।

ठीक उसी कॉलम के नीचे दूसरी खबर थी कि भगवान के हाईजैक होने से मोदी सबसे ज्यादा खुश हैं। अचानक उन्हें लगने लगा कि भक्तों की संख्या बढ़ाने का यही सही समय है। ऊपर वाले के तमाम फॉलोवर अब उनकी तरफ डाइवर्ट हो सकते हैं। भाई, दुनिया में सबसे ज्यादा मेंबर जब भारतीय जनता पार्टी के हैं तो सबसे अधिक भक्त भी तो मोदी के ही होने चाहिए ना। इस मामले में भगवान भला बाज़ी क्यों मार ले जाएं।

हां, अमित शाह की परेशानी ज़रूर बढ़ गई है। दरअसल मोदी हैं सेल्फी दीवाने। जहां गए झट सेल्फी खींची और फट अपलोड कर दी। अब भइया इंडियन भगवान सेल्फी तो लेते नहीं। वहां तो 8 भुजाओं के साथ, सावधान की मुद्रा खड़े होकर, मंद मंद मुस्कुराना होगा। किसी भी ऐरे-गैरे के साथ, 56 इंच का सीना दिखाते हुए, ऊबड़-खाबड़ सी सेल्फी डालेंगे तो भक्त थोड़े ही फॉलो करेंगे।

उधर केजरीवाल ने इस बात को चैलेंज की तरह लिया है।  उनका मानना है कि जब जनता के संकट मोचन वो हैं तो पूजा मोदी की क्यों हो? आखिर  बिजली पानी का रेट उन्होंने ही हाफ किया। था कोई भगवान जो इस काम को कर देता?  इशारों इशारों में ये भी समझा दिया है कि तमाम नास्तिक प्रशांत भूषण बनने को तैयार रहें।

वहीं मांझी का रो-रो कर बुरा हाल है। कह रहे हैं कि अब आम और लीची दिलाएगा कौन? वो तो सिर्फ फल मांग रहे थे लालू और राबड़ी तो पूरे के पूरे पेड़ पर हक जताने चले आए। कहीं मंदिर के कपाट खुलते-खुलते आम का सीज़न ही ना निकल जाए।

इन सबके बीच राहुल बाबा ज़रूर खुश हैं। कम से कम कुछ दिन लोग ये तो नहीं कहेंगे कि 'भगवान इस पप्पू को बुद्धि दे' और फिर किसे पता जनता ऐसे ही एक्सेप्ट कर लें।

मुश्किल में कोई है तो वो है मैगी, जो ये मान चुकी थी कि अब भगवान का ही सहारा है। FSSAI ने तो ये कहते हुए कोमा में भेज दिया कि अब ऊपर वाला ही कोई चमत्कार दिखा सकता है और देखो, ऐन वक्त पर उसने भी धोखा दे दिया।

समझ नहीं आई तो बस एक बात कि दुनिया सैलरी इंक्रिमेंट के लिए भगवान के पास जाती है 'हे प्रभु इस बार सैलरी बढ़ा देना'........'2-5 परसेंट से काम नहीं चलेगा, कम से कम 10 परसेंट तो बढ़ाना ही'..... 'महंगाई तो देखो कम से कम'.......'काम हुआ तो देशी घी के लड्डू चढ़ाउंगा, पक्का'

अब हम तो ठहरे बाहर वाले। भगवान का मन किया फरियाद सुन ली, नहीं मन किया टाल दी। पर पुजारी तो भगवान के खासमखास हैं। तगड़ी वाली सेटिंग है उनकी भगवान से। आखिर सुबह शाम अंदर बैठे बैठे भगवान से बतियाते जो रहते हैं। कभी-कभी तो ऊपर वाले का मैसेज भी नीचे वालों तक ट्रांन्सफर कर देते हैं। ऐसा तो नहीं कि दोनों का ब्रेक-अप हो गया हो? मेरा मतलब कुट्टी !!!!  कॉल ड्रॉप की दिक्कत भी हो सकती है। पंडित बेचारे हैलो-हैलो ही करते रह गए हों और बैलेंस हो गया झम्म्म्म्म। या फिर सेवा ठीक से नहीं की होगी तो भगवान जान बूझ के बदला ले रहे हैं कि जा बच्चू, अब बढ़वा ले अपनी तनख्वाह।